Mirza Ghalib sad shayari , Mirza Ghalib shayari | Hindi status

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Mirza Ghalib sad shayari



Galib ki shayari in hindi collection for Whatsapp and Facebook 
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जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में।


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तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान,झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता ..!


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हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’मर गया पर याद आता है, वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता ।


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आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है


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छुपा लो मुझे अपने सासों के दरमियाँ, कोई पूछे तो कह देना जिंदगी है मेरी…!


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हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ, जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।


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तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’ तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!


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तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता । .।


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Mirza Ghalib Sad Shayari बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.


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अच्छा कालीफा नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं काम होता है शाम क्यों नजरों में पूछ उन परिंदों से हसीन का है जिनका घर नहीं होते


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इसकी मौत पर जमाना अफसोस करें जो तो गाली गालिब हर शक्स दुनिया में आता है मरने के लिए की खुशियां बनाए रखें


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अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना


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आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे..!


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ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते, कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।


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मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..! !!”


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बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..


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रात है ,सनाटा है , वहां कोई न होगा, ग़ालिब, चलो उन के दरो -ओ -दीवार चूम के आते हैं. !


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दुश्मन भले ही आगे निकल जाए कोई खुशियों के ठिकाने बहुत होंगे मगर हमारी बेचैनियों की वजह तुम हो,galib shayari, ।



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ये संगदिलो की दुनिया है, संभालकर चलना ‘ग़ालिब’ यहां पलकों पर बिठाते है, नजरो से गिराने के लिए… .


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आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी अब किसी बात पर नहीं आती ।।


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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था..!


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अपने किरदार पर डाल कर पर्दा, हर कोई कह रहा है, ज़माना खराब है…



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तुम्हें तनहा ना करते खाली फुर्सत नहीं से नहीं मोहताज होते है तुम कहीं और के मुसाफिर हो हमारा शहर तो बस रास्ते में आया था,


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ज़रा कर जोर सीने पर की तीर -ऐ-पुरसितम् निकले जो, वो निकले तो दिल निकले , जो दिल निकले तो दम निकले.


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कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..




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रे म्हारी गाड़ी पे जाट लिख्याहोया, किसे लाल बत्ती ते कम है के! !



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खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब, मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह।


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मगर लिखवाए कोई उस को खत तो हम से लिखवाए हुई सुब्ह और घरसे कान पर रख कर कलम निकले.. |


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कागजो पर तो अदालते चलती है हम तो जाट के छोरे है फैसला on the spot करते है।


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नशे पते की आदत कोनी मौज लिया करू मौके की दो चीजा की लत कसूती लाग्गी बैरण एक तेरी एक होक्के की 😉 😅


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मरते है आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नही आती, काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’ शर्म तुमको मगर नही आती ।



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कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता


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आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे 2 LINE MIRZA GHALIB SHAYARI


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कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना, है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है..!



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हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब, न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।


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मरते है आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नही आती, काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’ शर्म तुमको मगर नही आती । !



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मगर लिखवाए कोई उस को खत तो हम से लिखवाए हुई सुब्ह और घरसे कान पर रख कर कलम निकले..


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मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!


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तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’ तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!


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देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं


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तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत नहीं है ग़ालिब , कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद.



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मेरे पास से गुजर कर, मेरा हाल तक नहीं पूछा, मैं कैसे मान जाऊँ के, वो दूर जाके रोए…. …

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कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाए हाए


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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था..!


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हम को मालूम है, जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल को खुश रखने को, ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है…


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जताया नहीं करते वह अक्सर गुस्से में रोजा करते हैं बेहद ख्याल रखा करो तुम अपना मेरी आम सी जिंदगी में बहुत खास हो तुम



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इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के.


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दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।


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कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..


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उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.


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उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या, उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए..!





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